Holi Essays In Hindi On Happy Holi 2015

Holi is one of the best and colourful festival of India. Holi will be celebrated on 6th of March 2014. It is celebrated in all over the India irrespective of age and religion. On this occasion people uses to wish happy holi to their friends and relatives with Holi SMS Messages Quotes Greetings Wallpapers.

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Essay On Holi In Hindi


प्रस्तावना - होली हिन्दुओं का एक प्रमुख धार्मिक त्यौहार है जो कि बसंत ऋतु में मनाया जाता हैं! यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता हैं ! यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं वहां भी धूम धाम के साथ मनाया जाता हैं जिनमें बांगला देश, पाकिस्तान तथा कुछ अन्य लोगों द्वारा जो की हिन्दू संस्कृति का अनुकरण करते हैं वहां भी मनाया जाता हैं जिसमे सूरीनाम, मलेशिया, दक्षिणी अफ्रीका, त्रिनिदाड और टोबाको, यूनाइटेड किंगडम, यूनाइटेड स्टेट, मर्तिओउस, और फ़िजी मुख्य हैं !


महत्त्व - होली के त्यौहार से जुडी हुई कई प्राचीन कहानियाँ जुड़ी हुई हैं कि कैसे यह त्यौहार प्रारंभ हुआ तथा कैसे और किस तरह से इसकी लोकप्रियता भारतवर्ष में ही नहीं अपितु अन्य देशों में भी विख्यात हुई!


वैष्णव धर्म के अनुसार - वैष्णवों के अनुसार प्राचीन काल में हिरन्यकशिपु नाम से एक महान राक्षस राजा हुआ करता था ! जिसने अपने तपो बल से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर उनसे यह वरदान माँगा था कि उसे मारना बिलकुल ही संभव न था!

उसने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर उनसे यह वरदान माँगा कि वो जब मरे तब न तो दिन हो न रात हो, न तो घर में हो न तो घर के बाहर, न तो पृथ्वी पर हो न आकाश पर हो, न ही मनुष्य द्वारा हो न ही पशु द्वारा, न ही अस्त्र द्वारा हो न ही शशस्त्र द्वारा, !

इस वरदान को पाने के बाद वह अहंकारी हो गया और उसने स्वर्ग तथा पृथ्वी पर आक्रमण कर दोनों ही लोको में विजय प्राप्त कर उसने लोगों की भगवान् की पूजा करने पर भी निषेध लगानी शुरू कर दी! ऋशियों मुनियों के हवन यज्ञ आदि प्रतिबंधित कर दिए गए और लोगों को कहा की सब उसकी पूजा करे और उसे प्रसन्न करे !


इस मान्यता के अनुसार हिरन्यकशिपू का पुत्र प्रहलाद खुद ही भगवान् विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था ! हिरन्यकशिपू के कई धमकियों के बाद भी प्रहलाद ने भगवान् विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी और निरंतर वह भगवान विष्णु की पूजा आराधना में ही लीन रहता था !

हिरन्यकशिपू ने उसे मारने के लिए जहर दिया तो उसको खाने के बाद भी जहर का असर प्रहलाद पर कुछ भी नहीं हुआ ! मानो वह जहर मुख में जाते ही अमृत बन गया !
प्रहलाद को हाथी के पैरों के नीचे डाल कर कुचलने की कोशिश भी नाकाम हुई इससे भी उसे कुछ हानि नहीं पहुंची !
उसे भूखे और बड़े जहरीले साँपों के साथ डाला गया पर फिर भी वह जीवित बच गया !

तब उसने प्रहलाद को जलती हुई चिता पर बैठाने की आज्ञा दी !

तब हिरन्यकशिपू की बहन जिसका नाम होलिका था, उसने कहा की में प्रहलाद को ले कर चिता में बैठ जाती हूँ, क्यूंकि होलिका को भगवान् से वर प्राप्त था ! भगवान् ने उसे वरदान में एक ऐसा वस्त्र प्रदान किया था जिसे ओढ़ कर वह आग में प्रवेश करने पर भी आग की लपटों से सुरक्षित रहती और कभी भी नहीं जलती !

उसने वह वस्त्र ओढ़ कर चिता में प्रवेश किया तथा बालक प्रहलाद को अपनी गोद में बिठा लिया !
चिता में अग्नि प्रज्वलित की गई , पर अग्नि की भयंकरलपटों में भगवान् की कृपा से वह वस्त्र होलिका के शरीर से उड़ कर प्रहलाद पर लिपट गई !
और उस चिता में आग की लपटों से होलिका जल कर मर गई पर प्रहलाद को कोई नुक्सान नहीं पंहुचा !
तभी से हिंदुओं में यह दिन होलिका दिवस के रूप में मनाया जाता है!
होलिका की मूर्ति को ऐसे धातुओं से बना कर तैयार करते हैं कि वह अग्नि में जल जाये, तथा बालक प्रहलाद को पत्थर से तरास कर बनाते हैं की वह कभी न जले !
इस प्रकार यह होलिका भारतवर्ष में जगह 2 पर जलाई जाती है !


होली से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण कहानिया !

कृष्ण और राधा की कहानी - होली का त्यौहार भगवान् कृष्ण और राधा के प्रेम और रास लीलाओं का एक अभिन्न अंग माना जाता हैं ! इस सम्बन्ध में पुरातत्व प्रवक्ताओं से मिली जानकारी के अनुसार, कृष्ण जी का रंग श्याम वर्ण था तथा राधा बहुत ही स्वेत वर्ण की थी, जिसके कारण राधा और कृष्ण में हमेशा टकरार होती रहती थी ! राधा जी, कृष्ण जी को साँवले सलोने आदि नामों से पुकार कर हमेशा उन्हें चिढ़ाया करती थी !
एक दिन इसी बात पर चिढ़ कर कृष्ण जी ने, राधा जी के चेहरे पर बहुत सारा रंग हाथों में ले कर लगा दिया, फिर क्या था राधा और उनकी अन्य सखियाँ भी रंग लेकर कृष्ण जी पर फेकने लगे, कृष्ण के सखा भी साथ में आके कृष्ण जी के साथ तथा गोपिकाये राधा जी के साथ यह एकदूसरे पर रंग फेकने लगे ! वृन्दावन में बंसत के ऋतू में उस दिन यह सारी प्रक्रिया शुरू हुई तो उसी दिन से यह दिन प्रेम, विश्वास और भक्ति के त्यौहार के नाम से सारे भारतवर्ष में मनाया जा रहा हैं !


शिव पार्वती और कामदेव की कहानी - इस कथा के अनुसार शिव अर्धांगिनी माँ सती ने जब अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में बिना आमन्त्रर के यज्ञ में भाग लिया तो दक्ष प्रजापति ने सती को, भगवान् शिव जी के लिए कठिन और कटु वचन सुनाए! माँ सती अपने पति के लिए दक्ष प्रजापति से इतने अपमानित और कटु वचन सुन न सकी ! एक पतिव्रता स्त्री के लिए अपने पति के बारे में ये सब सुनना भी असहनीय था! उन्होंने उसी समय तत्क्षण दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुंड में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी !

यह सब घटना जब भगवान् शंकर को मिली तो उन्होंने दक्ष प्रजापति के यज्ञ को विध्वंस कर दिया और दक्ष प्रजापति का सर धर से अलग कर दिया !
पर सांसारिक कर्मों को सुचारू रूप से चलाने के लिए दक्ष प्रजापति का जीवित होना परम आवश्यक था तब सभी देवताओं ने मिलकर शिव जी की स्तुति की और उनसे प्रार्थना की कि वे दक्ष प्रजापति को माफ़ कर दे, उसने अहंकार वश आकर ये कृत्य किया अब उसे जीवित कर उसे अपनी भूल सुधारने का अवसर प्रदान करे !

भगवान् शिव जी ने दक्ष प्रजापति को माफ़ कर उसके शरीर को एक बकड़े के धर से जोड़ कर उसे जीवन दान दिया !
पर सती के वियोग में भगवान् शिव बहुत ही दुखी हो तप साधना में लीन हो गए ! उन्होंने संसार से ही मुख मोड़ लिया !

दूसरी ओर माँ सती ने पार्वती के रूप में राजा हिमालय के घर जन्म लिया ! पार्वती चाहती थी कि उनका विवाह भगवान् शिव से हो जिसके लिया उन्होंने कठिन तपस्या प्रारंभ की हज़ारों सालों की तपस्या के बाद भी वो भगवान् शिव के तप को न तो भंग कर सकी अपितु भगवन शिव प्रसन्न ही हुए !

तब भगवान् विष्णु ने कामदेव को पार्वती जी की सहायता के लिए भेजा, और कामदेव ने बसंत ऋतू के आगमन पर शिव जी के ऊपर पुष्प बाण चलाया जिससे भगवान् शिव जी की तपस्या भंग हो गई, पर भगवान् शिव ने अपनी तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को तत्क्षण तीसरी आँख खोल कर भस्म कर दिया! पर जब शिव जी ने पार्वती जी को देखा तो उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया !
इस आधार पर होली की आग में वासनात्मक आग की आहुति देकर सच्चे प्रेम की विजय के रूप में आज भी होली का पर्व मनाया जाता हैं !

रति और कामदेव की कहानी - इस कथा के अनुसार के अनुसार रति जो की कामदेव की पत्नी थी, कामदेव के भस्म हो जाने पर विलाप करने लगी! वह भगवान् शिव से अपने पति के पुनर जीवन के लिए प्रार्थना करने लगी ! वह भगवान् शिव को मनाने में लग गई की कामदेव ने जो भी किया वह भगवान् विष्णु के कहने पर लोक कल्याण के किया! तब सभी रति तथा भगवान् विष्णु, ब्रह्मा जी आदि देवों के परम आग्रह पर उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित कर जीवन प्रदान किया!
अतः कामदेव के पुनर्जीवित होने पर यह दिन बहुत ही हर्षों उल्लास के साथ होली के रूप में विख्यात हुआ !


कृष्ण, कंस और पूतना की कहानी - मथुरा में कंस नामक एक राजा था जो ऋषि मुनियों आदि पर बहुत ही अत्याचार करता था ! कंस की एक बहन थी जिसका नाम देवकी था, देवकी का विवाह कंस ने धूम धाम के साथ वासुदेव से किया पर जब वासुदेव देवकी को लेकर अपने राज्य विदा हो रहा था तो उस समय एक तेज आकाशवाणी हुई, की हे मूर्ख जिस बहन का विवाह तमने इतनी धूम धाम से किया हैं उसी बहन के गर्भ से उत्पन्न आठवें पुत्र द्वारा तेरा वध होगा!
यह भविष्यवाणी सुनकर कंस ने अपने जमता वासुदेव तथा बहन देवकी को कारागार में डलवा दिया कि जब तक उसके गर्भ से उत्पन्न आठवें पुत्र को मार नहीं दूँ तब ये दोनों यहीं कारागार में ही रहेंगे !
कारागार में जन्मे देवकी के सभी सातों पुत्रों को कंस ने कारागार में ही मार दिया ! पर जब आठवें पुत्र का जन्म हुआ तो कारागार में सभी सैनिक गहरी नीद में सो गए कारागार के दरवाजे खुल गए कारागार में भविष्यवाणी हुई कि हे वासुदेव अपने इस पुत्र को गोकुल में नन्द जी और यशोदा जी के घर पहुचा दो और उनकी पुत्री को जो की आज ही जन्मी हैं उसे अपने साथ यहाँ कारागार में ले आओ – वासुदेव ने ऐसा ही किया कृष्ण जी को नन्द जी को सौंप कर उनकी पुत्री को कारागार में ले आये !
कंस को जब पता चला कि देवकी की आठवीं संतान ने जन्म लिया हैं तो वह उसे मारने को कारागार में आया ! पर जैसे ही उस पुत्री को मारने को अपने हाथों में लिया वह अदृश्य हो बोलने लगी हे मुर्ख कंस – मैं तो एक पुत्री हूँ तुझे तो देवकी की आठवी संतान जो की पुत्र हैं उसके द्वारा तेरा वध निश्चित हैं – तू मुझे मारने की विफल चेष्टा कर रहा हैं वहां गोकुल में तेरा वध करने के लिए वह अवतरित हो चुका हैं !
यह सुनकर कंस काफी डर गया और उसने योजना बनाई कि गोकुल के में जन्में सभी नवजात शिशुओं की वह हत्या करवा देगा ! इसके लिए उसने पूतना नमक एक राक्षसी को गोकुल भेजा !

वह सुन्दर रूप धारण कर गोकुल की स्त्रियों के साथ घुलमिल जाती फिर स्तनपान के बहाने वह शिशुओं को विषपान द्वारा मार देती ! गोकुल के कई शिशु उसके विषपान का शिकार हुए !

एक दिन जब उसने नन्द जी के घर में प्रवेश किया तो कृष्ण जी को विषपान करवाना चाहा पर कृष्ण जी के दिव्य शक्ति के आगे उसकी एक न चली! और उसी दिन उन्होंने शिशु रूप में पूतना का वध कर दिया !

जब यह बात गोकुल वासियों को पता चली तो वे इस दिवस को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ होली के रूप में आज भी मानते हैं!


राक्षसी ढूंढी और अबोध शिशुओं की कहानी - प्राचीन काल में एक राजा थे जिनका नाम पृथु था ! उसी समय एक ढूंढी नमक एक राक्षसी उनके राज्य में आ गई थी जिसने कठोर ताप करके देवताओं से वरदान प्राप्त किया था कि उसे न मानव, देवता, राक्षस मार सके बल्कि ठंडी और गर्मी का भी उस पर कोई असर न हो! इस प्रकार का वरदान पाने के बाद वह अत्याचारी हो गई, वह अबोध शिशुओं को खा जाती थी ! उसके इस तरह के कृत्यों को देख रजा पृथु ने अपने राज पुरोहित को बुला कर उनसे इसका समाधान पूछा! तब राज पुरोहित ने बताया कि बसंत ऋतू पूर्णिमा के दिन में गाँव के सभी बालक मिलकर अपने 2 घरों से लकड़ियाँ लेकर निकले और एक जगह सभी लकड़ियों को इकठ्ठा कर जोर -2 से मंत्रोचारण करें प्रदिक्षना करें फिर लकड़ियों में आग लगाकर जोर 2 से चिल्लाये, शोरगुल करें, तालियाँ बजाएं गाना गाये एक साथ हसें इस प्रकार एकभाव में होकर एक साथ इकठ्ठा होकर करने से वह राक्षसी मर जाएगी!
पुरोहित के कहानुसार – राजा ने अपने राज्य में घोषणा करवा दी ! पूर्णिमा के दिन सभी बच्चों ने मिलकर ऐसा ही किया और भाच्चों के इस प्रकार के शरारत को वह राक्षसी सहन न कर सकी और वह भाग खड़ी हुई!
अतः यह होली का त्यौहार एकता के प्रतीक के रूप में भी मान्य हैं!

भगवान् शिव तथा शिव गणों की कहानी - एक और महत्त्वपूर्ण कथा शिव गणों से सम्बंधित हैं ! इस कथन के अनुसार शिव जी से पार्वती जी का विवाह फागुन मास के पूर्णिमा को हुआ था ! और उनके विवाह में शिव गणों ने जिनमे भूत, पिचाश, सर्प, पशु आदि थे जो भगवान् शिव के साथ उनके बारात में माँ पार्वती के घर जा रहे थे ! शिव पार्वती जी का विवाह इन सारे गणों की उपस्थिति में हुआ था जो कि बहुत ही अदभुत और अद्वितीय माना जाता है!
होली के दिन इस कथा के अनुसार लोग रंग आदि लगाकर शिव गणों का वेश धारण करते हैं और शिव और पार्वती जी के शुभ विवाह के लिए बाराती बन उनके विवाह को हर्षोल्लास के साथ मनाकर होली का पावन त्यौहार मानते हैं!

होली की परम्पराए तथा वर्णन - भारतवर्ष में हजारों की संख्या में लोग होली का त्यौहार मनाते हैं ! होली के त्यौहार की बहुत सी प्रमुख मान्यताये हैं! सबसे पहली तो यह त्यौहार बसंत ऋतु के आगमन तथा नये मौसम के साथ, अच्छी फ़सल और समृधि के लिए मनाया जाता हैं!
हिन्दू रंगों के साथ नए मौसम का आगमन और ठण्ड के मौसम को विदाई देते हैं!
यह त्यौहार अन्य कई पौराणिक कथाओं से भी जुडी हुई हैं ! यह बहुत ही धार्मिक और आनन्दमय त्योहारों में से एक हैं! होली के एक दिन पहले होलिका जलाई जाती हैं जबकि, होली के दिन रंग और गुलाल से लोग एक दूसरे को लगाकर एकता और प्रेम भाव जताते हैं!

रंगपंचमी - रंगपंचमी पूर्णिमा के पाचवें दिन मनाया जाता हैं जो कि रंगों से खेलने अथवा होली की समाप्ति का दिवस माना जाता हैं!

मुख्य होली दिवस - होली का मुख्य दिन जिसे संस्कृत में धूलि, धुल्हेती, धुलेंडी, धुल्वन्दना, और धुल्हंदी आदि नामों से भी जाना जाता हैं !

होलिका दिवस - होली के एक दिन पहले लोग आग जलाकर होलिका दहन करते हैं उसे होलिका दहन के नामसे तथा दक्षिण भारत में इस आग जलने की प्रक्रिया को काम दहन के नाम से मानते हैं!

छोटी होली - होलिका दहन के बाद दूसरे दिन, लोग इसी दिन से रंग खेलना प्रारंभ करते हैं जो कि रंगपंचमी दिवस तक मनाया जाता हैं!

”होली का त्यौहार कई जगहों पर दो दिन ही मनाते हैं जिसका मुख्य कारण सामाजिक नियमनिष्ठा के अतिरिक्त आयु, लिंग, कास्थ और सामाजिक प्रतिष्ठा में विभिन्नता मानी जा सकती हैं !
इन विभिन्नताओं के बावजूद भी आदमी हो या औरत, बूढ़ा हो या बच्चा सभी इस त्यौहार को आत्मीयता तथा पुरे प्रेम भाव से मानते हैं!
यह त्यौहार विनम्र भाव से नहीं बल्कि पूरे जोश और बहुत ही उत्साह से मनाया जाता हैं! ”

रतनावली में अंकित होली - जिसके अनुसार लोग एक दूसरे को रंग लगाने के साथ बास से बनी पिचकारियों में पानी में घुले हुए रंग भर कर एक दूसरे पर डालते थे !

आधुनिक होली - आधुनिक होली की उत्पत्ति का मुख्य श्रोत बंगाल के प्राचीन पद्धति को माना जाता हैं !
वैष्णव तंत्र के अनुसार बंगाल में गुरिया वैष्णव त्यौहार ही आधुनिक होली का प्राचीन रूप हैं! जिसमें लोग कृष्ण जी के मंदिर जाते थे और कृष्ण जी को लाल रंग लगा कर मालपुआ का भोग चढ़ते थे! उसके बाद ही वे दोस्तों और परिवार जनों के साथ रंग अबीर लगाकर होली खेलते और प्रसाद ग्रहण करते थे !
लाल रंग प्रेम का प्रतीक माना जाता हैं और कृष्ण जी को तृष्णा का महान राजा मानते हैं ! इसीलिए लाल रंग होली में बहुतायत से प्रयोग होता हैं!
होली का त्यौहार के मुख्य आकर्षण में लोग खुद की तृष्णा को भगवान् कृष्ण जी को समर्पित कर उन्हें प्राप्त करने की कोशिश करते हैं तथा समाज में एक अच्छे मनुष्य के रूप में जाने जाए इस का भी एक उदाहरण हैं!


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